कुमार वीरेंद्र ने कहा कि पाण्डे जी कम शब्दों में अपनी पूरी पीडा व्यक्त कर ले जाते हैं। ये आज भी सक्रिय हैं ये अच्छी बात है।

 हरीश चंद्र पांडे की कविताओं पर परिचर्चा - शिवानंद मिश्र


 


" alt="" aria-hidden="true" />कविता आपको सम्मोहित करे ये अच्छी बात नहीं बल्कि कविता आपके अंदर कुछ जगा दे जो आपके अंदर सोया हुआ है। कविता का काम है कि वह खुद कोई कोलाहल न करे बल्कि हमारे अंदर उथल-पुथल पैदा कर देउपरोक्त बातें डॉ. राजेंद्र कुमार ने अभिव्यक्ति के तत्वावधान में, बाल भारती स्कूल में, कवि हरीश चंद्र पांडे की कविताओं पर आयोजित परिचर्चा में अपना अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कहीं। उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि पांडे जी की कविताएं अपने पाठक के साथ एक रिश्ता जोड़ लेती हैं। ये विषय चुनते नहीं बल्कि अपने आस-पास से एक चीज़ उठाते हैं और उसके माध्यम से अपनी बात कह जाते हैं। ये भावोचित अनुभवों के माध्यम से कविता रच डालते हैं। इनकी कविताओं में धैर्य की धीमी-धीमी आँच में पकती हुई अनुभूतियाँ एक रूप लेती हैंइनके पास विनम्र प्रतिरोधी आत्मविश्वास है। अपनी पीड़ा को व्यक्त न कर पाने वाले व्यक्तियों के पक्ष से कविता बोले यह कवि की जिम्मेदारी है और ये इस पर खरे उतरते हैं।


      कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आज के समय में कोई क्रांति नहीं हो रही और लोग उम्मीद करते हैं कि कविता के माध्यम से क्रांति हो जाए। उन्होंने आगे _जोड़ा कि अनिल श्रीवास्तव के संपादन में छपी 'कथ्यरूप', में मैंने हरीश चंद्र पांडे को पहली बार पढा था तभी से इनका मुरीद हो गया। जो कवि पहाड़ से इलाहाबाद आए उन्होंने पहाड़ की खूबसूरती को अपनी कविता का विषय बनाया जबकि हरीश चंद्र पांडे ने अपने पहाड़ की तकलीफों से अपने आप को अलग नहीं किया बल्कि पहाड़ की खूबसूरती के साथ-साथ उन तकलीफों का सार्थक और रचनात्मक उपयोग किया। इन्होंने मामूली चीजों को भी अपनी कविता में ला कर उन्हें गैरमामूली बनायाइनमें अवलोकन और सम्प्रेषण की अद्भुत कला है।


    __ प्रणय कृष्ण ने कहा कि पाण्डे जी दृष्टिकोण बदलने वाले कवि हैं। ये उन चीजों पर प्रकाश डालते हैं जिनसे हम अपरिचित होते हैं, हालांकि हम उन चीजों से हमेशा दो-चार होते रहते हैंपाण्डे जी कविताओं को पढ़ते हुए हम ऊपर के दृश्यमान को निषेध करके उन चीजों को देख पाते हैं जो उसमें छपी होती हैं। हर कवि का अपना मिजाज और काम करने का तरीका होता है। विषय तय कर के नहीं, आस-पास की चीजों के माध्यम से विषय-वस्तु निकल कर आती है। पाण्डे जी के यहाँ जेंडर के प्रति विशिष्ट चेतना है। इनके यहाँ जेंडर की समझदारी एक अलग किस्म के धरातल पर देखने को मिलती है।


      रघुवंशमणि ने कहा कि कविता में राजनैतिकता के साथ-साथ मानव संवेदनाओं को सूक्ष्मता से पकड़ने की चेष्टा होनी चाहिए। हरीश चंद्र पाण्डे की कविताएँ विभिन्न विषयों पर लिखी गई हैं। अलक्षित कर दिए जाने की समस्या हरीश चंद्र जी कविताओं में है। उन्होंने आगे जोड़ा कि आज जो सत्ता के विरोधी हैं उन्हें किसी न किसी तरह से चुप कराने का प्रयास किया जा रहा है। पाण्डे जी की कविताओं में विचार हैं, प्रतिबद्धता है, साथ ही वो सब है जिसे हम राजनैतिक कविता कहते हैं।


      अनिल कुमार सिंह ने कहा कि पाण्डे जी की कविताएं पॉलिटकली लाउड नहीं हैं बल्कि प्रतिपक्ष तैयार करने की कविताएँ हैं। जहाँ एक ओर असहमति की जगह समय के साथ कम होती गई है, पाण्डे जी बिना किसी तल्खी के अपनी बात कह ले जाते हैं यह बड़ी बात है। पाण्डे जी की कविताओं का अपना एक मुहावरा है जो उनको अन्य कवियों से अलग करता है।


      विशाल श्रीवास्तव ने कहा कि मझे इस बात से आपत्ति है कि लोग पहाड़ से आए कवियों को पहाड़ का कवि कहा जाता है। इस तरह कवि के कविता कर्म को सीमित नहीं किया जाना चाहिए। पाण्डे जी अपनी बात बिम्बों के माध्यम से बड़ी कुशलता से कह ले जाते हैं। 


      __कुमार वीरेंद्र ने कहा कि पाण्डे जी कम शब्दों में अपनी पूरी पीडा व्यक्त कर ले जाते हैं। ये आज भी सक्रिय हैं ये अच्छी बात है।


    हरीश चंद्र पाण्डे की कविताओं पर शोध कर रहे सुनीत मिश्र ने कहा कि इलाहाबाद में दो कवि पहाड़ से आए, सुमित्रा नंदन पंत और हरीश चंद्र पाण्डे। सुमित्रा नंदन पंत ने पहाड़ के सुकुमारतम स्वरूप को अपनी कविता का विषय वस्तु बनाया जबकि पाण्डे जी कविताओं में पहाड़ की सुंदरता और जटिलता दोनो नजर आती है। इनकी कविताओं में श्रम और सौंदर्य दोनो का अद्भुत समावेश देखने को मिलता है। हरीश चंद्र पाण्डे की कविताएँ नारेबाजी से दूर हैं।


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